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ब्रोकली की खेती

ब्रोकली की खेती कर हरदोई के किसान हो रहे हैं मालामाल

ब्रोकली की खेती कर हरदोई के किसान हो रहे हैं मालामाल

उत्तर प्रदेश का हरदोई जिला अक्सर सुर्खियों में बना रहता है। आज उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में किसान सब्जियां उगा कर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। यहां पर सबसे खास बात यह है, कि यहां के किसान अब इस तरह की सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं, जिनका भारी मात्रा में विदेशों से आयात किया जाता है। इस तरह की सब्जियों में सबसे खास सब्जी है ब्रोकली। ब्रोकली का नाम किसने नहीं सुना होगा, आजकल लोग भारी मात्रा में सब्जी का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक मानी गई है। ब्रोकली को कैंसर जैसी बीमारी से बचाने के लिए सहायक माना गया है, साथ ही इसमें प्रोटीन भी काफी ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। उत्तर प्रदेश के जिले हरदोई के किसान भारी मात्रा में इस सब्जी का उत्पादन कर रहे हैं। हरदोई के कोथावां ब्लॉक के तेरवा पतसेनी निवासी किसान सुशील मौर्य पहले एक साधारण किसान थे। वह अपनी पुश्तैनी खेती की जमीन पर धान- गेहूं जैसी फसल उगा कर अपना गुजारा चला रहे थे। यहां के किसान सुशील बताते हैं, कि 2017 में हरदोई में स्थित गांधी भवन में उद्यान विभाग द्वारा एक प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसमें अलग-अलग तरह की सब्जियों के स्टाल लगाए गए थे। यहां पर किसानों को अलग-अलग तरह की सब्जियां उगाने के बारे में जागरूक किया गया था तो वहीं पर सुशील मौर्य ने पहली बार गोभी जैसी दिखने वाली है हरी सब्जी देखी थी। जब उन्होंने सुपरवाइजर से पूछा कि यह कौन सी सब्जी है तो उनका उत्तर था कि यह ब्रोकली है।

भारत में भी किसान कर रहे हैं ब्रोकली की खेती

उत्तर प्रदेश के किसान सुशील मौर्य से बातचीत में पता चला कि वह अब ब्रोकली की खेती कर रहे हैं और इससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा हो रहा है। साथ ही, उन्होंने हमें यह भी जानकारी दी कि जब उन्हें इस खेती के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी तो उन्होंने उद्यान विभाग से संपर्क किया और वहां के अधिकारी सुरेश कुमार ने उन्हें अच्छी तरह से ब्रोकली की खेती और उससे मिलने वाले मुनाफे के बारे में जानकारी दी। एक बार जानकारी मिल जाने के बाद उन्होंने इसकी खेती शुरू की और अब वह लाखों में कमाई कर रहे हैं।


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सुशील मौर्य से मिली जानकारी से हमें पता चला है, कि वह साल 2017 से ही सब्जी की खेती कर रहे हैं। फसल की सबसे अच्छी बात है, कि उन्हें पहले साल में ही इससे मुनाफा मिलना शुरू हो गया था। पहले उन्हें कस्बे के बाजार में इसके लिए अच्छे खरीदार नहीं मिल रहे थे तो उन्होंने इस सब्जी को हरदोई की सब्जी मंडी तक पहुंचाया जहां पर उन्हें अपनी फसल का बहुत ही उचित दाम मिला। इसके बाद एक दिन उन्होंने लखनऊ जा रही पिकअप ट्रांसपोर्ट के जरिए अपनी फसल लखनऊ भेजी और वहां से मिले फायदे से तो मानो उनकी जेब नोटों से ही भर गई। लखनऊ से लौटकर इस सब्जी की खेती बड़े स्तर पर शुरू कर दी। अब कई व्यापारी खेत से ही इस ले जाते हैं, इस सब्जी का बाजार भाव समय के अनुसार 100 से 200 रूपये किलो तक मिल जाता है।

ठंडी जलवायु में पैदा होती है यह फसल

उद्यान विभाग के अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि, गोभी की तरह दिखने वाली इस ब्रोकली को बड़े बड़े मॉल एवं बड़े बड़े बाजारों में बहुत ही उचित दाम पर बेचा जाता है। इसके अलावा बहुत से पांच सितारा होटल में भी इसकी सब्जी और सलाद बड़े ही चाव से खाया जाता है। ब्रोकली की नर्सरी के लिए सबसे उत्तम महीना सितंबर, अक्टूबर और जनवरी माना जाता है। वैसे इसे अब किसान अपनी सुविधा के अनुसार 12 माह उगा रहे हैं। किसान सही वातावरण के अनुसार इसकी नर्सरी तैयार करते हैं। ब्रोकली की खेती के लिए 15 से 25 डिग्री के बीच तापमान उचित माना जाता है। यह ठंडी जलवायु में पैदा होने वाली सब्जी की फसल है।

फूलगोभी की तरह ही तैयार हो जाती है नर्सरी

हो सकता है यह आपने पहली बार सुना हो लेकिन ब्रोकली 3 रंगों में होती है, जिसमें बैंगनी, सफेद और हरा शामिल है। इसकी किस्मों में पेरिनियल, नाइन स्टार और इटालियन ग्रीन जैसी कई उन्नतशील किस्में शामिल हैं। हरदोई के किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती कर रहे हैं और इसकी सबसे अच्छी बात है, कि आप फूलगोभी की तरह इस की नर्सरी तैयार कर सकते हैं।
किसान ने विपरीत परिस्थितियों में स्ट्रॉबेरी और ब्रोकली की खेती कर मिशाल पेश की

किसान ने विपरीत परिस्थितियों में स्ट्रॉबेरी और ब्रोकली की खेती कर मिशाल पेश की

राजस्थान के जोधपुर जनपद से संबंध रखने वाले किसान रामचन्द्र राठौड़ विपरीत परिस्थितियों में भी स्ट्रॉबेरी एवं ब्रोकली की खेती कर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अपनी इस सफलता से उन्होंने बहुत सारे अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। रामचन्द्र विगत 19 वर्षों से खेती कर रहे हैं। जब कोई इंसान कुछ ठान लेता है, तो विपरीत परिस्थितियों में भी उसे हांसिल अवश्य कर लेता है। ऐसी ही एक कहानी है, राजस्थान के जोधपुर जनपद से संबंध रखने वाले किसान रामचन्द्र राठौड़ की, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ ऐसी फसलों की खेती करी, जो कोई सोच तक भी नहीं सकता था। सामान्य तौर पर राजस्थान एक कठोर जलवायु परिस्थितियों वाला राज्य है। इसके बावजूद भी रामचन्द्र ने एक बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी एवं ब्रोकली की खेती कर विभिन्न लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अपनी इस सफलता से उन्होंने बहुत से अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। इसके साथ ही दूर-दूर से किसान भी इनसे प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं। राजस्थान के इस किसान ने विपरीत परिस्थितियों एवं काफी चुनौतियों से घिरे होने के चलते भी मिशाल पेश कर दी है। बतादें कि इस किसान ने राजस्थान की रेतीली जमीन में स्ट्रॉबेरी और ब्रॉकली की खेती कर ड़ाली है।

समस्यापूर्ण परिस्थितियों में की कृषि

रामचन्द्र राठौड़ जोधपुर जनपद की लूनी तहसील से ताल्लुक रखते हैं। लूनी पश्चिमी राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र का एक हिस्सा है, जो बंजर जमीन के लिए जाना जाता है। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र को प्रदूषित पानी की वजह डार्क जोन के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। हाल के दिनों में कुछ सुधार के होते हुए भी, इस रेगिस्तानी इलाके में लोग बार-बार सूखे का संकट झेलने को मजबूर हैं। ज्यादातर युवा नौकरी की खोज में शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। परंतु, इस चुनौतीपूर्ण परिदृश्य में भी रामचंद्र राठौड़ ने अपनी पैतृक जमीन पर स्ट्रॉबेरी और ब्रोकोली की सफलतापूर्वक खेती करके बहुत सारे लोगों को हैरान किया है। ऐसा कहते हैं, कि उनके खेत के टमाटर फ्रिज के अंदर दो महीने तक ताजा रहते हैं। रामचन्द्र की कृषि तकनीकों ने वैश्विक कृषि विशेषज्ञों का ध्यान भी खींचा है।

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किसान ने महज 17 वर्ष की आयु में कृषि शुरू की थी

मीडिया खबरों के मुताबिक, रामचन्द्र ने कहा है, कि वे चुनौतियों से भरी परिस्थितियों में बड़े हुए हैं। उनके पिता जी भी एक किसान थे एवं उन्हें अपर्याप्त बरसात की वजह से बार-बार फसल की विफलता का सामना करना पड़ता था। जिसकी वजह से रामचन्द्र को आगे की पढ़ाई करने की जगह खेती में मदद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने अपने परिवार का सहयोग करने के लिए सिलाई की तरफ रुख किया एवं स्व-वित्तपोषण के जरिए से 12वीं कक्षा तक अपनी शिक्षा जारी रखी थी। हालांकि, 2004 में अपने पिता की मौत के पश्चात उन्होंने 17 साल की आयु में अपनी पैतृक जमीन पर वापस खेती करने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि शुरुआत में वे बाजरा, ज्वार और मूंग की खेती किया करते थे। हालांकि, उन्हें प्रदूषित एवं अनुपयुक्त जल के चलते बहुत सारी समस्याओं को सामना भी करना पड़ा।

सरकारी प्रशिक्षण ने जिंदगी को पूर्णतय परिवर्तित कर दिया

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उनके जीवन में अहम मोड़ तब आया जब उन्हें सरकार की कृषक मित्र योजना के अंतर्गत जोधपुर सीएजेडआरआई संस्थान में सात दिवसीय प्रशिक्षण का अवसर मिला था। इस प्रशिक्षण ने उनको सिखाया कि कृषि के लिए वर्षा जल का संरक्षण किस प्रकार किया जाए। साथ ही, रेगिस्तानी परिस्थितियों में नवीन कृषि पद्धतियों को कैसे अपनाया जाए। बतादें कि प्रशिक्षण ने उन्हें कृषकों की सहायता करने वाली सरकारी योजनाओं की एक श्रृंखला से भी परिचित कराया है। प्रशिक्षण ने उनको इस विश्वास को चुनौती देने के लिए प्रेरित किया कि अकाल एवं बेमौसम बारिश असाध्य समस्याएं हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण से अर्जित व्यावहारिक ज्ञान के जरिए उन्होंने वर्षा जल संचयन की क्षमता एवं अनियमित मौसम पैटर्न के विरुद्ध पॉलीहाउस के सुरक्षात्मक लाभों की खोज करी।

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किसान रामचंद्र बहुत सारे कृषकों को प्रेरित कर रहे हैं

जोधपुर जनपद में बागवानी विभाग के एक अधिकारी द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर रामचंद्र ने 2018 में एक पॉलीहाउस का निर्माण किया है। इसके पश्चात उन्होंने 2019-20 में एक फार्म तालाब एवं एक वर्मी-कम्पोस्ट इकाई निर्मित करके अपनी कोशिशों का विस्तार किया। पॉलीहाउस में खीरे की खेती के लिए वर्षा जल का इस्तेमाल करके, उन्होंने केवल 100 वर्ग मीटर में 14 टन का रिकॉर्ड-तोड़ उत्पादन हासिल की, जो कि जोधपुर जनपद के किसी भी कृषक द्वारा बेजोड़ उपलब्धि है। अपने नए-नए इनोवेशन को जारी रखते हुए उन्होंने नकदी फसलों के क्षेत्र में कदम रखा और रेगिस्तानी क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी और तोरी की सफलतापूर्वक खेती कर ड़ाली है। उन्होंने अपनी भूमि का एक अहम भाग बागवानी खेती के लिए समर्पित करते हुए जैविक उर्वरक उत्पादन का भी बीड़ा उठाया है। उनकी सफलता की कहानी ने व्यापक असर उत्पन्न किया है। साथ ही, अन्य कृषकों को भी इसी तरह की पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है।